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Showing posts from November, 2012

Kalyug ka Mahadev, Balasaheb

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इंसान की रूप मे कलयुग का महादेव है बालासाहेब , इस युग से विराम लिए अगले युग मे आएँगे बालासाहेब , एक नये रूपमे, हर युग मे आएँगे बालासाहेब , जिनकी उंगली की नोक पे तलवार की धार , हर बोली मे है जिनकी शेर की दहाड़ , अंत नहीं हुआ उनका बस इस युग से विराम लिए , कलयुग का महादेव है बालासाहेब मानव की मृत्यु होती है , महा मानव की नहीं , भगवान मंदिर , मशजीद हर जगह स्थान लेते है , महा मानव इतिहास बना जाते है , हर इंसान की दिल मे स्थान बना जाते है . महा मानव की रूप मे , कलयुग का महादेव है बालासाहेब , सुनसान हुय हर राह , हर मंज़र , जब बंद हुई उनकी आँखे , थम गयी हवा , स्तब्ध हो गया हिन्दुस्तान , जब बंद हुई थोड़ी देर उनकी सांसे , वक़्त ही थम गया , जब लिए विराम इस युगसे , कलयुग का महादेव है बालासाहेब .

Dhoond

Is not only a simple poem, it’s a thought given by my Grandmother, ढूंड, ढूंड, तुझे सुबह मिलेगी, सूरज नहीं! ढूंड, रोशनी मिलेगी तुझको, किरणें नहीं!!   सागर के किनारे लहरे मिलेगी,               सागर की गहराई नहीं. जिंदगी मिली तुझको, जिंदगी की समझ नहीं. खेल कूदके तुझे शरारती बचपन मिली,             ठहरी नहीं, मिली जवानी भी नही ठहरेगी. ना ठहरा है वक़्त, ना ठहरेगी वक़्त की लाड़िया.            गुज़र जाएगी, साथ ही जीवन की ये घड़िया. बुढ़ापा नज़ाने कब मौत के दरवाजे पे दस्तक देगा! ढूंड, ढूंड, सबकुछ मिलेगी तुझको,                  असलमे कुछ नहीं. धन, दौलत, सोहरत और मुस्कुराते मुहरत,                  साथ ना रहेगी. जब ना रहेगी दो बूँद आंशु,        ...