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Pain of Damini - Delhi Rape Victim Nirbhaya

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अपनी दर्द की दास्तान मैं किसको सुनाती ?       मैं खुद रो भी नहीं पति थी. मैं कितना चीखती, कितना चिल्लती रही..       मेरी चीख किसी ने भी ना सुनी. ना वो काली रात ने सुनी,       जिसके सहारे मैं अपने पलकों मे ख्वाब संजोए सोती थी, ना वो सूनी सड़कों ने सुनी,       जिसको मैं अपना मंज़िल समझके चलती थी. कोई भी ना था वहाँ, जो मुझे सहारा देता,       जो भी थे वो मेरे बदन को नोच नोच के मुझे दर्द देते रहे, दर्द के साइवा कुछ भी नहीं था मेरे पास,       अपनी दर्द की दास्तान मैं किसको सुनाती ? वो पल भी कितने बदनशीब थे       मेरे संग संग, संग मेरे चलपडे, चलते चलते उसी आशियाने मे पनाह लिए,       जहाँ भेड़िए इंशान की रूप मे रहते थे, हमे उनकी हवस का शिकार बनना पड़ा,       मेरी बेबस जिंदेगी को उनके सहारे छोड़ना पड़ा. मेरी मजबूरी पे उनको थ...